“आपका बंटी” मन्नू भंडारी के उन बेजोड़ उपन्यासों में है जिनके बिना न बीसवीं सदी के हिंदी उपन्यास की बात की जा सकती है ना स्त्री विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है। बच्चों की निगाहों और घायल होती सम्वेदना की निगाहों से देखी गई परिवार की यह कहानी बच्चों की दुनिया को एक भयावह दुस्वप्न बना जाती है। कहना मुश्किल है कि यह कहानी बालक की है या माँ की क्यूँकि सभी तो एक दूसरे में ऐसे उलझे हैं कि एक की त्रासदी सभी की ज़िंदगी में भागी बन जाती है।
मन्नू भंडारी हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका है जिनका जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। आपके कई उपन्यास प्रसिद्ध हैं जिनमें महाभोज और "आपका बंटी" (राधाकृष्ण प्रकाशन 1971) सबसे प्रमुख हैं। आपका बंटी मुख्यतः पति और पत्नी के बीच मंझधार में फँसे उस अबोध बालक की कहानी है जो माँ और पिता के प्यार को संपूर्ण रूप से ना पा सका। यह एक ऐसी कहानी है जो एक कार्यकारी महिला चुनौती का सामना करती है, कैसे वह समाज के लोगों को और अपने परिवार और बच्चों की देख रेख के बीच में सामंजस्य बैठाने की कोशिश करती है और उसमें अपने स्वयं के अस्तित्व को भूल जाने दिया। उसको ज़िंदा रखने की एक संघर्ष गाथा है।
एक अंश इस ऊहापोह को रेखांकित करता है,
“शुरू के दिनों में ही एक ग़लत निर्णय ले डालने का एहसास दोनों के मन में बहूत साफ़ होकर उभर आया था, जिस पर हर दिन और हर घटना ने केवल सान ही चढ़ाई थी। समझौते का प्रयास भी दोनों में एक अंडरस्टैंडिंग पैदा करने की इच्छा से नहीं होता था, वरन् एक-दूसरे को पराजित करके अपने अनुकूल बना लेने की आकांक्षा से । तर्कों और बहसों में दिन बीतते थे और ठंडी लाशों की तरह लेटे-लेटे दूसरे को दुखी, बेचैन और छटपटाते हुए देखने की आकांक्षा में रात।…साथ रहने की यंत्रणा भी बड़ी विकट थी और अलगाव का त्रास भी। अलग रह कर भी वह ठंडा युद्ध कुछ समय तक जारी ही नहीं रहा, बल्कि अंजाने ही अपनी जीत की संभावनाओं को एक नया संबल मिल गया था कि अलग रहकर ही शायद सही तरीक़े से महसूस होगा कि सामने वाले को खोकर क्या कुछ अमूल्य खो दिया है।
“ सामनेवाले को पराजित करने के लिए जैसा सायास और सन्नद्ध जीवन उसे जीना पड़ा उसने उसे ख़ुद ही पराजित कर दिया । सामने वाला व्यक्ति तो पता नहीं कब परिदृश्य से हट भी गया और वह आज तक उसी मुद्रा में, उसी स्थिति में खड़ी हैं-साँस रोके,दम साधे,घुटी -घुटी और कृत्रिम!”
यदि परिवार के तनाव और माँ-बाप के सामंजस्य की बालमन में क्या छाप होती है, बालक मन को समझना है तो आपका बंटी ज़रूर पढ़ना पड़ेगा आपको।
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