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Showing posts from May, 2017

तमस: भीष्म साहनी

“वतन का फ़िक्र कर ज्यादा मुसीबत आनेवाली है | तेरी बरबादियों के तजकरे हैं आसमानों   में ||” भीष्म साहनी द्वारा लिखित "तमस" का नाम वैसे तो बहुत प्रचिलित था परन्तु पढने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ| अतः, जब विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर मेरी दृष्टि इस पर पड़ी तो सहसा लगा की इससे अच्छा अवसर नहीं प्राप्त होगा| भाई अमित सिंह से भी कई बार चर्चा हुई की यह बहुत ही संवेदनशील उपन्यास है और कई बार एसा उद्द्वेलित होकर एसा महसूस होगा की आगे अब नहीं पढ़ पाएँगे , हुआ भी कुछ एसा| पूरा उपन्यास पढने में लगभग 20 दिन लग गए क्युकि कुछ घटनाये और वर्णन पढने के बाद उनकी गहनता और गंभीरता आपको इतना प्रभावित करेंगी कि आपका मन विचलित हो जाएगा| उपन्यास की पृष्ठभूमि स्वतन्त्रता पूर्व अविभाजित भारत की है जिसमे आज़ादी की लड़ाई और विभाजन की राजनीति साथ साथ चल रही है| बकौल साहनी जी उन्होंने यह उपन्यास भिवंडी दंगो की विभीषता देखने के बाद लिखी क्योंकि उनके मानस पटल पर वो यादें पुनः लौट आई जिन्हें वो समय के साथ पीछे छोड़ आये थे| जानवरों  को धार्मिक तौर पर विभाजित कर जिस पृष्ठभूमि पर शुरुवात ह