अमृतलाल नागर जी की रचना “सुहाग के नूपुर” पढ़ी जो की तमिल महाकवि इलोंगवान की रचना “शिलप्पदिकारम” का भावार्थ है। पुस्तक राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। नागर जी का जन्म 17.08.1916 को आगरा में हुआ था लेकिन उन्होने लखनऊ को केंद्र बना कर कार्य संपादित किया। हिंदी के अलावा बांग्ला, तमिल, गुजराती, मराठी भाषा में निपुणता हासिल की। अपनी सेवाओ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया। उस समय के साहित्यकारों को नयी विधा और नए ज्ञान के प्रति अनुराग प्रशंसनीय है। यह उपन्यास नागर जी के दक्षिण भारत भ्रमण और उस पर काफ़ी अध्ययन के बाद लिखा गया है। यह उपन्यास आपको उत्तर भारत संस्कारों के परिप्रेक्ष में दक्षिण भारत में प्रचलित सामाजिक व्यवस्था और जीवनशैली का एक प्रतिबिंब है। यह देखा गया है कि कई बार विभिन्न संस्कृतियों जैसे दक्षिण, उत्तर, पूरब और पूर्वोत्तर भारत में अलग अलग लोकाचार, सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन शैली होती है और व्यक्ति अपनी ही सभ्यता को सर्वोच्च समझता है। लेकिन यदि इस तरह के भावार्थ और रूपान्तरण पढ़ेंगे तो हमें समस्त भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलेगी।
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