रेहन पर रग्घू : काशीनाथ सिंह

यह लेख मेरे लिए और इस ब्लॉग के लिए विशेष है क्योंकि यह साठवाँ अंक है। दशक पूर्व शुरू की गई इस यात्रा में कई बार रुकावटें आई लेकिन कई प्रशंसकों ने पुनः इसे जीवित करने का निवेदन किया तो उनके प्रोत्साहन से यात्रा अभी तक निरंतर चल रही है। आज हम चर्चा करेंगे काशीनाथ सिंह रचित प्रसिद्ध "रेहन पर रग्घू" जिसका प्रकाशन "राजकमल प्रकाशन" ने सन 2008 में किया है। काशीनाथ सिंह जी आज किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में उनका विशेष स्थान है । काशी का अस्सी प्रायः आप सभी ने पढ़ी होगी। उनका लेखनी का एक अलग अंदाज है, जिसमे ग्रामीण परिवेश, उस परिवेश में उधेड़ बन में लगा आदमी, पारिवारिक स्थितियों मे दबा, सामाजिक तानों- बानों में अपने आप को उलझाता - निकालता हुआ व्यक्ति। रेहन का मतलब होता है किसी भी चीज को गिरवी रख देना। रेहन पर रग्घू पुस्तक के मुख्य पात्र रघुनाथ सिंह किरदार के इर्द गिर्द घूमती है। रघुनाथ और शीला की तीन संताने हैं, बेटे संजय, धनंजय और बेटी सरला। मिर्जापुर के एक छोटे से गाँव पहाड़पुर कि पृसठभूमि में एक छोटे से परिवार कि महत्वाका...