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केदारनाथ से महापण्डित की यात्रा।

इस लेख का शीर्षक लेख पूर्ण होने के बाद बदलना पड़ा। लेख पूर्ण होने के उपरांत सहसा लगा कि इस महान विभूति ने जीवन पर्यंत को प्राथमिकता दी है तो शीर्षक भी यात्रा आधारित होना चाहिए। 

आज आपका परिचय हिन्दी साहित्य के उस मूर्धन्य साहित्यकार से कराने जा रहा हूँ जिसका नाम केदारनाथ पांडे था लेकिन प्रसिद्धि हुई राहुल सांकृत्यायन के नाम से। बाद में उन्हें महापंडित की उपाधि से अलंकृत किया गया। इनका जन्म 9 अप्रैल को आज़मगढ़ ज़िले में हुआ। 

सांकृत्यायन को भारत में यात्रा वृतांत विधा के पितामह के रूप में भी जाना जाता है और इन्हें 30 से भी अधिक भाषाओं का ज्ञान था। इनकी १३० से अधिक रचनाओं में प्रसिद्ध में वोल्गा से गंगामेरी तिब्बत यात्रा और मध्य एशिया का इतिहास प्रमुख हैं। 

हाल ही में मैंने मेरी तिब्बत यात्रा का अध्ययन किया। पढ़कर एसा महसूस होता है कि उस काल में जब यात्रा और संचार के साधन इतने सीमित थे तब इस महान योगी ने एसा सूक्ष्म विश्लेषण और गंभीर अध्ययन किया कि आज हमारे ज्ञानकोष में वो रचनाएँ दुर्लभ साहित्यहैं। मेरी तिब्बत यात्रा में जिस दुरूह और दुर्गम मार्ग का उन्होंने लेखन किया है वो वाक़ई में उनकी यात्रा और नयी नयी दुनिया को देखनेउसे समझने और बाक़ी दुनिया को उसे बताने में उनके अटूट समर्पण की कहानी है। 

तिब्बत से उनको इतनी आत्मीयता थी कि अपनी चार तिब्बत यात्राओं में उन्होंने पुरानी पाण्डुलिपियों और दुर्लभ कृतियों का अध्ययन करने के साथ उनका संरक्षण भी किया। उनमें से कुछ पाण्डुलिपियों को वो वापस भारत लाये जो की आक्रांताओं द्वारा पूर्व में लूट कर के जायी गयीं थीं। 

यहाँ तक कि तिब्बती भाषा को सीखने के उपरांत तिब्बत के ऊपर एक पुस्तक भी लिखी है। मेरी तिब्बत यात्रा में आप लिखते हैं, “तिब्बतवालों से मैं कुछ ज़्यादा निश्चिन्त था, क्योंकि मैं जानता था कि वह चार-पाँच सौ बरस पुरानी दुनिया में रह रहे हैं। सिर से हज़ारों मन का बोझ उतरा-सा गया मालूम हुआ। शायद प्राकृतिक सौंदर्य कुछ और पीछे ही से शुरू हो गया था, लेकिन अब तक मेरी आँखें उसके लिये बंद-सी थीं, अब मैं आँख भर के पार्वत्य-सौंदर्य की ओर देखता था।”

तिब्बत यात्रा और बुद्ध दर्शन के अध्ययन का प्रभाव उन पर येसा पड़ा कि उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया और उसके उपरांत अपना नाम राहुल रखा। भारत सरकार ने साहित्य अकादमी और पद्म भूषण सम्मान से आपको सम्मानित किया।


अगर किसी को यात्रावृतांत की सूक्ष्मता को समझना है तो राहुल सांकृत्यायन से अच्छा साहित्य नहीं मिलेगा। एशिया की संपूर्ण यात्रा के उपरांत, सनातन और बौद्ध धर्मों के गूढ़ अध्ययन करने के पश्चात, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रही के रूप में भाग लेने के उपरांत आपका देहावसान दार्जिलिंग में आज ही के दिन 14 अप्रैल 1963 को हो गया। लेकिन आपकी लेखनी अमरत्त्व प्रदान कर गई।

महापण्डित



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