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बहुत दूर, कितना दूर होता है...

 

मैं बहुत पहले ठोकर खा कर गिर चुका था।
जो बाद में उठकर भागा, वो मैं नहीं था।

    

        मानव कौल रचित "बहुत दूर, कितना दूर होता है" जब स्मृति जी ने उपहार स्वरूप भेजा तो मैं थोड़ा था अचकचाया क्योंकि पुस्तक के पृष्ठ पर जिस व्यक्ति का चित्र था वो व्यक्ति मुझे देखा-देखा सा लग रहा था। फिर सहसा याद आया कि ये तो "तुम्हारी सुलू" फिल्म (वही "बन जा तू मेरी रानी" गाना फेम) के अभिनेता है। आप यकीन कीजिए तब तक मुझे नहीं मालूम था कि उन महोदय का नाम मानव कौल है और तिस पर यह कि ये नामी लेखक हैं जिनकी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "बहुत दूर,कितना दूर होता है" से पहले मानव की  "ठीक तुम्हारे पीछे, प्रेम कबूतर” और “तुम्हारे बारे में” पहले प्रकाशित हो चुकी हैं ।

    "बहुत दूर, कितना दूर होता है" लेखक की 2019 में की गई एकल यूरोप यात्रा का यात्रा व्रतांत है। पुस्तक कि शुरुवात दो बच्चों के एक लघु वार्तालाप से होती है और फिर पूरी पुस्तक आपको लंदन से शुरू होकर, फ़्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी के छोटे शहरों जैसे Annecy, Chamonix से लेकर जेनेवा, बेसल, पेरिस, मकोन के पर्यटन का आनंद देती है। लेखक ने बीच-बीच में उन किरदारों के बारे में अपने संबंधों और वार्तालापों का अच्छा प्रयोग बुना है और उनके माध्यम से यह महसूस करता है (और करवाता है) कि वस्तुतः मूल मनुष्य प्रकृति कहीं ना कहीं समान है। चाहे वो लंदन कि कैथरीन हो, मर्सिया हो, कोरिया की जंग-हेचीन की ली-वां या ऑस्ट्रेलियन अंदरी। पुस्तक में एंथनी बौरदैन कि एक उक्ति बहुत अच्छे उद्धृत की  गई है जो कि लिखना समीचीन होगा:

    Travel is not always pretty. It isn’t always comfortable. Sometimes it hurts, sometimes it breaks your heart.  But that’s okay. The journey changes you; it should change you. It leaves marks on your memory, on your consciousness, on your heart, and on your body. You take something with you. Hopefully, you leave something good behind.” Anthony Bourdain

    लेखक ने अपने प्रवास का विवरण देते हुए बहुत ही अच्छा जीवन दर्शन दिया है:

वक्त रहते सब कुछ नहीं किया जा सकता है। जीवन हमारे बनाए नियमों से नहीं चलता है। वह फिसल रहा होता है। जैसे मुझे लगता है कि मुझे इस तरह कि यात्राएं बहूत पहले शुरू कर लेनी चाहिए थीं। अगर कर लेता तो यही शहर आज उतना पराया नहीं लगता। यात्राएं कतई आसान नहीं होती हैं। वे नोच लेती हैं- कितना कुछ भीतर से! हम कितना खाली हो जाते हैं!"

मैंने यात्रा व्रतांत काफी दिनों बाद पढ़ा किया, इससे पूर्व शायद अनुराधा बेनीवाल की "आजादी मेरा ब्रांड" पढ़ी थी। पुस्तक बहुत ही सुगम शैली में लिखी गई है और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग कम किया गया है। जगह-जगह पर संज्ञा-रूपी शब्दों का उपयोग इंग्लिश में किया गया है जो कि शायद आज के समय की लेखन शैली की छाप है। इस रचना कि खासियत ये है कि लेखक ने यात्रा के वर्णन के साथ साथ अपने वैयक्तिक अनुभवों को भी साझा किया है, जो कहीं न कहीं आपको अपने अनुभवों से जोड़ने कि कोशिश करेगा। जीवन में हर किसी कि एसी इच्छा होती है कि वह एकल यात्रा करे, लेकिन आदमी जीवन के झंझावातों में एसा फंस जाता है कि सुबह शाम कि रोटी में ही उलझा रहता है। बचा खुचा एक रविवार जो रहता है उसमे घर ग्रहस्थी कि चक्की में पिस्ता है। एसा नहीं है कि भारत में पर्यटन करना नहीं चाहते लोग लेकिन ना तो एसा हमारा समाज हमें प्रोत्साहित करता है, ना ही हमारे पर्यटक स्थल इतने low-cost यात्रा के लिए तैयार हैं। अगर कोई जाना भी चाहे तो धार्मिक पर्यटन ही वांछनीय होता है। एकल यात्री को खलिहर कि संज्ञा  से भी नवाजा जाता है।  कौल जी ने यह जरूर किया इस पुस्तक के माध्यम से कि एक iterinary बना दी है एकल यात्रियों के लिए जो दूर देश में अकेले कुछ समय बिताना चाह  रहे हैं जहां ना वो किसी को जाने और ना कोई उन्हें पहचाने। बस एकाकी जीवन कुछ महीनों के लिए।

एक विचारणीय बात लेखक ने अपने Annecy प्रवास के दौरान महसूस कि जिससे शायद सभी सहमत होंगे लेकिन उसे गलत साबित करने में सभी किंकर्तवीविमूढ़ होंगे। “बहुत पहले मैं सोंचता था कि कुछ लोगों ने मिल कर षड्यन्त्र रचा है हम सारे मनुष्यों के खिलाफ। हमें लगातार व्यस्त रखने का षड्यन्त्र। कुछ उस तरीके का सामाजिक तंत्र का निर्माण किया है कि आप पैदा होने से लेकर अपनी मृत्यु तक व्यस्त रहें। उस व्यस्तता के कुछ प्रलोभन  हैं जिनके कारण आपको लगता है कि आप स्वयं अपने जीवन के करता धरता हैं, परंतु ये प्रलोभन भी किसी और के दिए हुए हैं।  सफल और खुश रहने के चित्र इस कदर आपको बचपन से दिखाए जाते हैं कि आप बस उन चित्रों को पूरा करने में ही खुशी ढूँढने लगते हैं। अपना एक जीवन साथी होना चाहिए, फिर एक परिवार , फिर उसका एक चक्र और फिर उस चक्र में अंतिम सांस तक आजादी नहीं है।“ 

यात्रा व्रतांत में इच्छुक पाठकों के लिए अच्छी पुस्तक है और जिसके माध्यम से  वह यूरोप का सूक्ष्म अवलोकन कर सकते हैं  और जब वह स्वयं यात्रा पर जाएं तो उसका अनुभव लें। अंत में एक बात और मुझे ये समझ या गया कि मानव कौल  को कॉफी और croissant बहुत पसंद है और चूंकि मुझे यह नहीं मालूम था कि croissant  क्या होता है तो गूगल करना पड़ा। नव युगी पुस्तकों को पढ़ने का यह भी फायदा है। 😊

आशा है आप सब भी इस यात्रा का आनंद उठायेंगे।





 


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