Sunday, 26 March 2017

बाणभट्ट की आत्मकथा - पंo हजारी प्रसाद द्विवेदी

बाणभट्ट की आत्मकथा

-पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी

“जलौघमग्ना सचराचरा धरा विषाणकोट्याखिलविश्वमूर्तिना |
समुदधृता येन वराहरूपिणा स मे स्वयंभूर्भगवान प्रसीदतु ||”

      बाणभट्ट की आत्मकथा पढने का सबसे पहली बार विचार मन में तब आया जब कुमुद जी से “गुनाहों का देवता” के विषय में बात हो रही थी | बातो-बातो में जानकारी मिली की उक्त पुस्तक अपने ह्रदय में असंख्य मानवीय संवेदनाओ को समाहित किये हुए है और मूलतः वो बाणभट्ट की आत्मकथा  की पाण्डुलिपि का हिंदी अनुवाद है जो कि अपूर्ण है और जहाँ कही कोई सन्दर्भ उपलब्ध नहीं है वहां पर लेखक ने अन्य उपलब्ध समकालीन साहित्य का सहारा लिया है|

     इस लघु आलेख का उद्देश्य पुस्तक या लेखक की अलोचना या मूल्यांकन करना नहीं है| यह एक प्रयास है हिंदी साहित्य की महान विभूतियों और उनके कार्यो को आमजन के बीच में लाने का| वैसे भी जब से अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय बहुल हुए है तब से हिंदी और अन्य लोक भाषा के साहित्यों और जानकारों का अकाल सा पड गया है| एसा नहीं है की युवा पीढ़ी को यह पसंद नहीं है बल्कि मुख्य कारण ये है की उन्हें इस बात का एहसास नहीं की हिंदी साहित्य में इतनी विधा और विविधता है|
     मूलतः ये पुस्तक संस्कृत का हिंदी अनुवाद है क्योकि हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी के उन लेखको में से है जिन्होंने हिंदी को उसके पूर्ण भाव में लिखा है| एसा इसलिए भी आवश्यक है क्योकि संस्कृत से हिंदी का अनुवाद किसी प्रकांड विद्वान् द्वारा ही संभव है जिससे अनुवाद में भाव उसी प्रकार बने रहे जैसे की मूल पाण्डुलिपि में थे|
      अपने कथामुख से ही पुस्तक पढने वाले पर पकड़ बनाने लगती है और प्रथम कुछ पृष्ठों में संछिप्त परिचय के उपरांत विषय वस्तु इतिहास के पन्नो में आपको समेत लेती है| संस्कृत-बहुल शब्दावली और वर्तनी आपको हिंदी के उस गौरवमयी इतिहास से परिचय कराती है जो की हिंगलिश के इस दौर में शायद ही कोई लेखक आपको करा पाए| जैसे सूर्य देवता के लिए “भगवन मरीचिमाली” का प्रयोग |
      अच्छी बात ये है कि पुस्तक पढ़ते-पढ़ते आप थोडा बहुत इतिहास का भी ज्ञान प्राप्त कर लेते है जैसे हर्षवर्धन के समय में कन्नौज और थानेश्वर की क्या सामाजिक, राजनैतिक स्थिति थी| यही नहीं उस काल के दर्शन और दृष्टि आज भी उपयुक्त है जैसे आज सायंकाल तुम्हे यहाँ से चल देना होगा, भट्ट! राजनीति भुजंग से भी अधिक कुटिल है, असिधारा से भी अधिक दुर्गम है, विद्युत् शिखा से भी अधिक चंचल है |...तुम झूठ से शायद घृणा करते हो, मै भी करता हूँ; परन्तु जो समाज–व्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई है, उसे मानकर अगर कोई कल्याण कार्य करना चाहो, तो तुम्हे झूठ का ही प्रश्रय लेना पड़ेगा | सत्य इस समाज-व्यवस्था में प्रचछन्न होकर वास कर रहा है| तुम उसे पहचानने में भूल मत करना| इतिहास साक्षी है की देखि सुनी बात को ज्यों का त्यों कह देना या माँ लेना सत्य नहीं है | सत्य वह है जिससे लोक का आत्यंतिक कल्याण होता है| ऊपर से वह भी झूठ क्यों न दिखाई देता हो, वाही सत्य है|” इसका सन्दर्भ महाभारत के शांति पर्व से लिया गया है | जब बाणभट्ट  राजकुमारी देव पुत्र नंदिनी की रक्षा और उन्हें अपने पिता से मिलाने का बीड़ा उठाते है | यह प्रसंग और वाक्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है की हम आज भी यह मानते है की आँखों से देखा हुआ ही सत्य है, हम उसके अन्दर के निहितार्थ और गूढ़ बातो को समझने का प्रयत्न भी नहीं करते| चाहे वो हमारा परिवार हो, राजनैतिक स्थिति हो, पत्रकारिता जगत हो या कर्म क्षेत्र, हर जगह “तथ्य” की बात होती है, उस घटना या भाव की मनोस्थिति पर चर्चा ना कोई करना चाहता है और ना कोई सुनना चाहता है| इसी क्रम में जब कुमार कृष्णवर्मा आगे बाणभट्ट से कहते है की “मै तुमसे आशा रखता हु की उचित अवसर पर न तो झूठ से झल्ला उठोगे और ना एसे झूठ बोलने में हिच्कोगे ही, जिससे समग्र मनुष्य जाति उपकृत होती हो|”
     प्रायः हम ये मानते है की अगर हम सत्य और ईमानदार है तो किसी से नहीं डरना चाहिए और जो मन  में आये बोल देना चहिये परन्तु जब आगे पढ़ते है कि “सबसे बड़े सत्य को भी सर्वत्र बोलने का निषेध किया है| औषध के सामान अनुचित स्थान पर प्रयुक्त होने पर सत्य भी विष हो जाता है| हमारी समाज व्यवस्था ही एसी है की उसमें सत्य अधिकतर स्थानों में विष का काम करता है|”

    पुस्तक जिस क्रम में आगे बढती है वैसे वैसे वह एक इतिहास के टुकड़े को लेकर व्यापक सामाजिक अध्ययन में बदल जाती है| मानव संवेदनाओ के बीच बीच मध्यकाल् के विभिन्न साम्राज्यों और अक्रान्ताओ के बीच उठने वाले सांस्कृतिक संघर्ष का भी विवरण मिलता है| “ज्योतिषी की बात पर विश्वास ना करना उसकी समझ में आने लायक बात नहीं थी| मैंने कुछ अधिक नहीं कहा| केवल आकाश की ओर देखकर एक दीर्घ निश्वाश लिया|” तथापि आगे पढ़ के ज्ञात होता है की ज्योतिष आदि विज्ञान बाहर के अक्रान्ताओ की विद्या थी जिसे भारतीय समाज ने पूर्णतः अपना आत्मसात कर लिया है जैसे “मै जानता हूँ कि इधर हाल ही में यवन लोगों ने जिस प्रकार होरा-शास्त्र और प्रश्न-शास्त्र नामक ज्योतिष विद्या का प्रचार इस देश में किया है, वह यावनी पुराण-गाथा के आधार पर रचा हुआ एक अटकलपच्चु विधान है | भारतीय विद्या ने जिस  कर्म-फल और पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रतिपादित किया है, उसके साथ इसका कोई मेल ही नहीं है| यहाँ तक की हमारे पुराण-प्रथित गृह देवताओ की जाति, स्वभाव, और लिंग तक में अद्भुत विरोध स्वीकार कर लिए गए है, क्योकि यवन-गाथाओ में वीनस और दियना देवियाँ है और वे ही इन ग्रंथो की अधिष्ठात्री देवी मान ली गई है |” युद्ध की स्थिति का विवरण करते हुए और उस अवस्था में सभी वर्गों की एकता की आवश्यकता पर बल देते हुए अष्टादश उच्छ्वास में भैरवी का उच्चारण “राजाओ का भरोसा करना प्रमाद है, राजपुत्रों की सेनाओं का मुह ताकना कायरता है | आत्म-रक्षा का भार किसी एक जाति पर छोड़ना मूर्खता है| जवानों, प्रत्यंत दस्यु आ रहे है !” इसी पाठ में आगे भारतीय समाज के विभिन्न ऊँच-नीच आदि की चर्चा किया गया है और यह सन्देश देने का प्रयास है की समाज में स्तरीकरण के कारण किस प्रकार राष्ट्र का अस्तित्व ही खतरे में पद जाता है| जैसा की अज भी भारत वर्ष में है, विभिन्न जाति, धर्म, समुदाय आदि के भेद देश को अन्दर से खोखला कर रहे है, और क्यों एक संगठित शक्ति की परम-आवश्यकता है |   
    “उन देव-पुत्रों की आशा छोड़ो जो सामान्य शोक के आघात से छुई-मुई की भांति मुरझा जाते है | जिस आधार पर खड़े होने जा रहे हो, वो दुर्बल है | संभल जाओ जवानों, ... मृत्यु का भय मिथ्या है, कर्तव्य में प्रमाद करना पाप है, संकोच और दुविधा अभिशाप है|जवानों, प्रत्यंत दस्यु आरहे है !”

    राजसभा के वर्णन को यदि हम देखे तो चतुर्दश उच्छ्वास में लिखते है “राजसभा में असंयम और चापल्य का राज्य था| कोई सामंत पाशा खेलने के लिए कोठे खीच रहे थे, कोई धूतक्रीडा में उलझ चुके थे, कोई वीणा बजा रहे थे, कोई चित्रफलक पर राजा की प्रतिपूर्ति अंकित कर रहे थे और कोई-कोई अन्ताक्षरी, मानसी, प्रहेलिका, अक्षरचयुतक आदि काव्य विनोदो में व्याप्रत थे |...कुछ तो येसे भी ढीठ थे, जो भरी सभा में रमणियों के कपोल देश पर तिलक-रचना कर रहे थे...ज्यों ही महाराजाधिराज प्रधान अधिकरनिक और कुमार कृष्णवर्धन के साथ सभा मंडप में पधारे, त्यों ही सभा संयत और नियमानुसार श्रन्ख्लायुक्त हो गई|”

    स्त्री-सौन्दर्य के वर्णन के असंख्य उदाहरण है जिसमे हर अवस्था और भाव भंगिमा को अलग अलग स्थितियों में विभिन्न तरीके से वर्णित है| चाहे वो निउनिया का वर्णन हो या त्रिपुरभैरवी का मंडल्मुख या भट्टिनी का सौन्दर्य और आभामंडल वर्णन| हर पात्र के लिए उपयुक्त और चुने हुए विशेषणों का प्रयोग नवीन है, जो कि कही कही सामान्य हिंदी जानने या समझने वाले के लिए कठिन है| जैसे षोडश उच्छ्वास में निपुणिका के सौन्दर्य का वर्णन कुछ इस प्रकार है “वे (केश) आपांडू-दुर्बल मुख के ऊपर इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे, मानो प्रभातकालीन चंद्रमंडल के पीछे सजल जलधर लटके हों | श्वेत साड़ी से आवेष्टित उसकी तन्वी अन्गलता प्रफुल्ल कामिनी-गुल्म के समान अभिराम दिखाई दे रही थी | यद्यपि उसका मुख पीला पड गया था, तथापि उसकी खंजनचटुल आँखे बड़ी मनोहर लग रही थीं| आज उसके अधरों पर स्वाभाविक हसीं खेल रही थी|” इसके अलावा इस महिला-प्रधान उपन्यास में जो स्पष्ट जीवनदर्शन है वो प्रशंशा योग्य है जैसे “साधारणतः जिन स्त्रियों को चंचल और कुल-भ्रष्टा माना जाता है उनमें एक दैवी शक्ति भी होती है, यह बात लोग भूल जाते है | मै नहीं भूलता | मै स्त्री शरीर को देव-मंदिर के समान पवित्र मानता हूँ |”
     वैसे तो हिंदी भाषा साहित्य में रत्नों की कमी नहीं है और भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद , आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी , निराला सैकड़ो अन्य नाम प्रसिद्द है, उनमें पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम भी प्रमुख है| इस पुस्तक की विशेषता यही है की यह मूल पाण्डुलिपि जो कि अपूर्ण थी उसका अनुवाद है | जहाँ कही भी कोई पृष्ठ अपूर्ण या तारतम्य नहीं मिल रहा था वहा पर उसी काल के अन्य काव्य वा उपन्यासों का उपयोग लिया गया है जैसे की रत्नावली, हर्षचरित, कादंबरी आदि जिससे एक सम्पूर्ण भाव मिल सके |
    कहीं ना कहीं निपुणिका, बाणभट्ट और भट्टिनी के त्रिकोण में इतना सम्मोहन है की आप पुस्तक पढने के कई महीनो बाद तक उससे उबर नहीं पाते | आज भी मन करता है की कहीं पढ़ लूँ कि भट्टिनी अपने पिता तुवरर्मिलिंद से मिल चुकी है, भट्ट का जीवन कैसे बीता आगे, दोनों के बीच क्या प्रेम संयोग था आदि | मैंने स्वयं यह पुस्तक २ माह पूर्व पढ़ा और तभी से सोच रहा था की कुछ लिखूंगा इसके ऊपर परन्तु हिम्मत ही नहीं होती थी की इस महान कृति के ऊपर २ शब्द लिख सकूं | इसीलिए ज्यादातर कोशिश रही है की पुस्तक के कुछ अंश ही मूलरूप में उतार दिए है जिससे पाठको को कोई व्यवधान ना हो | उपन्यास में बीच-बीच कुछ लघु वाक्य अपने में जीवन-दर्शन समेटे हुए है जैसे “सामान्य मनुष्य जिस कार्य हेतु लांछित होता है, उसी कार्य के लिए बड़े लोग सम्मानित होते है|” अथवा “सत्य के लिए किसी से नहीं डरना, गुरु से भी नहीं, मन्त्र से भी नहीं;लोक से भी नहीं, वेड से भी नहीं |” या उपन्यास के अंतिम कुछ अध्यायों में युद्ध-प्रेरित समाज की मनोदशा और सन्यास लिए हुए ब्राह्मणों के परिवार की वेदना प्रकट की है |
भाषा शैली आसान है और शब्द क्लिष्ट है और बीच-बीच में संस्कृत उन्मुख है परन्तु प्रष्ठभूमि के कारण उनका मतलब आसानी से निकल आता है | आशय यह है की हिंदी के जानकारों और इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए इसे अवश्य पढना चाहिए |
“जय महावराह”


        (किसी भी गलती या त्रुटि के लिए क्षमा-प्रार्थना)




Thursday, 16 March 2017

Indicatives for CSE Interview 2017...


The results of CSE Mains 2016 have been announced and the Personality Test is scheduled to begin very soon. Though I have been like a rusted Iron block after working in the field in the last years, still the announcement of Mains result gives me a kick reminding my own days of UPSC CSE preparation where the everyday we used to wait for results along with the mighty ORKUT group which was source of all nonsense rumours and offcourse some sensical information. Once thing which happens first in the field is that you stop reading THE HINDU which is as boring as it could be in fast changing and flooding Whatsapp Gyan era. Though I opted for Businessline which in tone and tenor smells like its elder The Hindu so I will be suggesting few topics which may appear during the course of discussion in Personality test.

 1.       GST 
             Tops the chart only due to the fact that during last year it has occupied the first page of Newspaper. Also, the second reason is uneven and perceived treatment met to Indian Customs and Central Excise Service wherein more responsibilities have been delegated to state Depts manning VAT/Sales Tax etc.
  • When we prepare any topic for CSE PT it is not limited only to the definition or meaning and repercussions the event or issue. It is much broader as those aspects are covered in prelims and amins exam already. Here you have to be ready with the interconnections arising with it and also keep the broader policy framework, international synergies and constitutional values in the mind. 
  • Like in the case of GST the discussion may spread to federal relations between states and union, States and Panchayats. It may further spill to the line of polity where in larger issues like political and administrative relations apart from financial relations crop up. We have seen in the context of GST that a reform may take more than a decade as GST was 1st proposed around 2004-05 and still its in pipeline. 
  • If your answer is in the line of Ease of Doing business and overall regulatory issues then be ready to remember the indicators of Ease of Doing Business, its components , India’s position and major bottlenecks and step to improve it.
  • The another issue as discussed earlier arise is the personnel administration of GST as after giving 90 percent of assessee (taxpayers) to the states, the capacity and capability of state tax machinery is seriously questionable as it is more tech-dependent, need better training and skill-upgradation. So we need to focus on these areas also.
  • Corruption in tax administration may also come-up as last parting shot on the issue as it proposes to reduce discretion of Tax Authorities. Apart from clear distinction between direct and indirect taxes. One query to confuse you guys: Is service tax a direct or indirect tax?


2      2.   Stents pricing:

Apart from technical importance, purpose etc more focus here will be:
·         Regulatory role of NPPA
·         Whether the medical equipments, drugs, services be regulated or market should decide
·         Its impact on R&D in medical sector.
·         The clinical establishment bills of Govt of West Bengal which is criticized as well as appreciated for its efforts to regulate medical sector.
·         Need for govt. infrastructure in healthcare.
·         Difference between primary, secondary and tertiary healthcare
·         Scenario of health insurance in india
·         Newly drafted National Health Policy
·         VYAPAM scam (may crop up in wild if issue of quality of professionals is discussed alsong with NEET )

3    3.     Demonetization:

Enough material is available on net and newspaper. Just get your stats right as wrong stats can lead to trouble due to multiple availability of stats. Best source is RBI and FinMin. See some history of previous DeMo exercise. and for God's sake don't link results of election with DeMo as its still a topic of research so don't jump to the conclusions. 

4. Elections: 

There are rarely chances when election will be discussed, my interview was in 2012 when the SP Govt came into power but no quesry or opinion asked from us. frankly the reason may be that bureaucrats are SUPPOSED to be working neutral and impartial without focusing on the powers in dispensation which is good also. but yes the question may arise from National party- Regional party future perspective. you can reply without resorting to name calling etc as a matter of fact. also, the issue of EVM tampering may not be extensively asked as there are only allegations after every election. 

4              Focus more on your information furnished in DAF as that may be starting point and that is from where you can guide through the interview process by slight alertness and crafting answers and emphasing key words. Link of my Interviews are below, you can see the gradual improvements, if any :p :
        http://anuragrbl.blogspot.in/2012/04/this-daythat-year.html
        http://anuragrbl.blogspot.in/2012/05/my-interviewthis-year.html
        http://anuragrbl.blogspot.in/2013/03/upsc-interview-2013.html

     

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